इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने टीईटी-2011में अपात्र लोगों के शामिल होने संबंधी याचिका की खारिज : इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने टीईटी-2011 में अपात्र लोगों के शामिल होने संबंधी याचिका खारिज कर दी। अदालत ने कहा कि याची खुद इस परीक्षा में शामिल थे और असफल रहे हैं। अब इस पर उंगली उठाने का उन्हें अधिकार नहीं है। यह आदेश न्यायमूर्ति एपी शाही ने देवी प्रसाद व चार अन्य की याचिका पर दिया। याचिका में कहा गया था कि टीईटी -2011 में बीटीसी-2010 बैच के ढाई हजार ऐसे अभ्यर्थी शामिल हुए थे जो उस समय दूसरे सेमेस्टर में थे। उन्होंने चार अक्टूबर-2010 के शासनादेश का उल्लंघन किया है जिसमें कहा गया था कि सिर्फ अंतिम वर्ष के छात्र ही टीईटी दे सकेंगे। अभ्यर्थियों ने तथ्य छिपाकर परीक्षा दी और उत्तीर्ण भी हुए। उन सबका प्रमाणपत्र रद किया जाए।
2500 अभ्यर्थियों का टीईटी प्रमाणपत्र रद नहीं होगा बीटीसी 2010 का टीईटी प्रमाणपत्र
हाईकोर्ट ने बीटीसी 2010 बैच के करीब 2500 अभ्यर्थियों का टीईटी प्रमाणपत्र रद करने की मांग नामंजूर कर दी है। इन अभ्यर्थियों के चयन को चुनौती देने वाली कुछ अभ्यर्थियों की याचिका न्यायालय ने इस आधार पर खारिज कर दी कि याचिकाकर्ता स्वयं परीक्षा में सफल नहीं हो सके। इसलिए उनको दूसरों का प्रमाणपत्र रद करने की मांग करने का कोई अधिकार नहीं है।
देवी प्रसाद और चार अन्य द्वारा दाखिल याचिका पर न्यायमूर्ति एपी साही ने सुनवाई की। याचियों का कहना था कि बीटीसी 2010 बैच के करीब 2500 अभ्यर्थियों ने टीईटी 2011 की परीक्षा में शामिल होकर चार अक्टूबर 2011 के शासनादेश का उल्लंघन किया है। शासनादेश के मुताबिक मात्र दो वर्षीय बीटीसी- सीटी नर्सरी या एनटीटी परीक्षा पास अथवा अंतिम वर्ष की परीक्षा में शामिल होने वाले अभ्यर्थी ही टीईटी 2011 में शामिल हो सकते थे। 2010 बैच के अभ्यर्थी जो कि उस समय प्रथम वर्ष के द्वितीय सेमेस्टर में थे, ने सही तथ्य छिपा कर आवेदन किया और परीक्षा में शामिल हो गए। उनको सफल घोषित करके प्रमाणपत्र भी जारी कर दिया गया।
याचियों का कहना था कि यदि इन अभ्यर्थियों को सहायक अध्यापक भर्ती में शामिल किया जाता है तो उनके अधिकारों का हनन होगा। उन्होंने सक्षम अधिकारियों को इस संबंध में प्रत्यावेदन भी दिया है, जो विचाराधीन है। कोर्ट ने कहा कि याचीगण स्वयं टीईटी 2011 में उत्तीर्ण नहीं हो सके और वह परीक्षा लेने के तरीकों पर सवाल उठा रहे हैं। इस मामले पर ऐसे लोगों की मांग पर संज्ञान नहीं लिया जा सकता है। जिस प्रकार की अनियमितता का आरोप है, उसके लिए जांच और साक्ष्यों का संकलन आवश्यक है। याचीगण के पास इस प्रकार की मांग करने का कोई अधिकार नहीं है।
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