उत्तर प्रदेश सरकार शिक्षक भर्ती प्रक्रिया पर रोक हटवाने को कोर्ट में तर्क देगी
लखनऊ (ब्यूरो)। राज्य सरकार शिक्षक भर्ती प्रक्रिया पर से रोक हटवाने के लिए हाईकोर्ट की वृहद पीठ में संशोधित अध्यापक भर्ती नियमावली पेश करेगी। साथ ही अदालत को यह भी बताएगी कि टीईटी मेरिट के स्थान पर शैक्षिक मेरिट क्यों किया गया। यही नहीं राज्य सरकार का इरादा टीईटी की जांच रिपोर्ट पेश करने का भी है। बेसिक शिक्षा विभाग का मानना है कि उसके तर्कों से हाईकोर्ट संतुष्ट होकर भर्ती प्रक्रिया शुरू करने की अनुमति दे सकता है। शिक्षक भर्ती मामले में 3 अप्रैल को सुनवाई होने की उम्मीद है। कोर्ट यह तय करेगा कि शिक्षक भर्ती के लिए अपनाई गई प्रक्रिया ठीक है या नहीं।
प्रदेश के प्राइमरी स्कूलों में शिक्षकों की भारी कमी है। राज्य सरकार इसे देखते हुए टीईटी पास बीएड डिग्रीधारकों को सीधे सहायक अध्यापक रखना चाहती है। इसके लिए 72,825 पदों के लिए विज्ञापन निकाल कर आवेदन मांगे गए। इन पदों के लिए 69 लाख आवेदन आए। बेसिक शिक्षा विभाग ने मेरिट सूची में आए अभ्यर्थियों की 4 फरवरी से काउंसलिंग भी शुरू करा दी थी, लेकिन हाईकोर्ट ने इस पर रोक लगा दी। हाईकोर्ट में पहले डबल बेंच में शिक्षक भर्ती संबंधी मामले की सुनवाई हो रही थी। शिक्षक भर्ती में टीईटी को लेकर उठे सवालों को लेकर पूरा ब्यौरा हाईकोर्ट ने मांगा था। विभाग ने डबल बेंच को पूरी जानकारी दी थी, लेकिन अब यह मामला वृहद पीठ के हवाले कर दिया गया है।
बेसिक शिक्षा विभाग अब इसके आधार पर वृहद पीठ के समक्ष पूरा मामला रखेगा। इसमें बताया जाएगा कि शिक्षक भर्ती के लिए बेसिक शिक्षा अध्यापक नियमावली बदली गई है। नियमावली में शैक्षिक मेरिट को आधार बनाया गया है। टीईटी को केवल पात्रता परीक्षा माना गया है। यह भी बताया जाएगा कि टीईटी में गड़बड़ी की जांच रमाबाई नगर की पुलिस ने की थी। इस जांच के आधार पर मुख्य सचिव जावेद उस्मानी की अध्यक्षता में गठित कमेटी भी जांच कर चुकी है। जांच रिपोर्ट के आधार पर ही शिक्षकों की भर्ती प्रक्रिया शुरू की गई है
आज 1 अप्रैल 2013 से बच्चों को होगा शिक्षा का पूरा अधिकार
•अमर उजाला ब्यूरो
नई दिल्ली। आज से देश के हर बच्चे को अपने घर पड़ोस में निशुल्क प्राथमिक शिक्षा पाने का अधिकार होगा। केंद्र व राज्य सरकारों का यह दायित्व होगा कि वे 6 से 14 साल की उम्र के हर बच्चे को प्रवेश के लिए पर्याप्त स्कूल, शिक्षक तथा अन्य जरूरी संसाधन उपलब्ध कराए।
देश में शिक्षा के अधिकार कानून (आरटीई) को लागू करने के बाद सरकारों की जरूरी संसाधन जुटाने के लिए तीन साल की मोहलत दी गई थी, जो पूरी हो गई है, लेकिन तमाम उपाय अब भी अधूरे हैं। स्कूलों में 11 लाख से ज्यादा शिक्षकों के पद खाली हैं तो आठ लाख से ज्यादा शिक्षक अप्रशिक्षित हैं। हजारों निजी स्कूलों को अभी तक मान्यता नहीं मिली है, जिन्हें नए कानून के अनुसार अब बंद करना होगा। ऐसे में सवाल उठता है कि सरकारें बच्चों को संविधान व कानून के हिसाब से उनका अधिकार कैसे दिला पाएंगी।
स्कूली शिक्षा को संवैधानिक अधिकार के लिए वर्ष 2002 में 86वें संविधान में अनुच्छेद 21-ए जोड़ा गया था। तब से दस साल गुजर गए। पहले सर्वशिक्षा अभियान चलाया गया। फिर राइट टू एजूकेशन बिल के माध्यम से इस अधिकार को अप्रैल 2010 में लागू किया गया। बच्चों को शिक्षा के अधिकार का प्रस्ताव तीन साल के लिए स्थगित रखा गया था ताकि सभी सरकारें जरूरत के मुताबिक स्कूल, शिक्षा व अन्य तैयारियां पूरी कर सकें।
आरटीई कानून में किए गये कई महत्वपूर्ण फैसलों पर अभी तक अमल नहीं हो पाया है। सबसे बड़ा संकट देश के उन बड़े राज्यों के सामने है जो पहले से शिक्षा के क्षेत्र में पिछड़े हुए थे। इनमें उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, छत्तीसगढ़ जैसे राज्य शामिल हैं।
पूरे देश में सरकारी तथा सहायता प्राप्त स्कूलों में 11.87 लाख शिक्षकों के पद खाली हैं। इनमें से तीन लाख से ज्यादा सीटें अकेले यूपी में खाली हैं।
आरटीई में सभी शिक्षकों का प्रशिक्षित होना जरूरी है। देश में 8.6 लाख शिक्षक अप्रशिक्षित हैं। इनके प्रशिक्षण के लिए तीन साल में अभी तक नीतियां भी नई तय हो पाई हैं। इस बीच, केंद्र सरकार ने फिर से 13 राज्यों को अप्रशिक्षित शिक्षकों की भर्ती करने की छूट दे दी है। हर स्कूल में मैनेजमेंट कमेटी बनाने का प्रस्ताव है। आठवीं तक बच्चों को फेल न करने का फैसला तो लागू हो गया है, लेकिन बृहत्तर एवं सतत मूल्यांकन प्रणाली (सीसीई) कहीं शुरू नहीं हो सकी है। अलबत्ता कई राज्यों में शिक्षकों को अभी तक इस प्रणाली की जानकारी तक नहीं है।
आरटीई के तहत इसी तरह के एक दर्जन अन्य फैसलों पर भी तमाम राज्यों में कोई काम नहीं हुआ है। कुछ राज्यों ने आरटीई को प्रभावी करने के लिए एक साल की मोहलत मांगी थी, किंतु मानव संसाधन मंत्रालय ने इसे टाल दिया। अब दो अप्रैल को केंद्रीय सलाहकार बोर्ड की बैठक में इस पर चर्चा होगी। बैठक के बाद ही केंद्र सरकार अधूरी तैयारियों के लिए आगे और मोहलत पर कोई फैसला लेगी।
11
लाख से ज्यादा शिक्षकों के पद पड़े हैं खाली देशभर में
क्या है प्रावधान
छह से 14 साल के बच्चों को मुफ्त एवं अनिवार्य शिक्षा का प्रावधान
बच्चों को फीस नहीं देनी होगी, न ही यूनिफॉर्म, किताबें या ट्रांसपोर्टेशन पर खर्च करना होगा
हर 60 बच्चों को पढ़ाने के लिए कम से कम दो ट्रेंड शिक्षक रखना होगा
निजी शैक्षणिक संस्थानों में गरीब परिवारों के बच्चों के लिए 25 फीसदी सीटें आरक्षित
टीईटी अभ्यर्थियों को किया जा रहा है परेशान
अमर उजाला
देवरिया। टीईटी संघर्ष मोर्चा की साप्ताहिक बैठक रविवार को टाउनहाल परिसर में हुई। बैठक में न्यायालय को गुमराह करने और संघर्ष मोर्चा की मांगों को यूपी सरकार के दरकिनार किए जाने पर नाराजगी जताई गई। इसके लिए मोर्चा को संगठितहोकर संघर्ष करने पर बल दिया गया। बैठक को संबोधित करते हुए अध्यक्ष अनुराग मल्ल ने कहा कि राज्य सरकार बार-बार कोर्ट को गुमराह कर रही है और भर्ती प्रक्रिया को लंबित रखना चाहती है।राज्य सरकार के इस रवैये के खिलाफ प्रदेश के सारे टीईटी अभ्यर्थी पुन: सड़क पर उग्र आंदोलन करेंगे और विधानसभा के सामने धरना देंगे। बैठक में विकास पांडेय, शैलेष मणि, रघुबंश शुक्ला, शमशेर अहमद, हरेंद्रपुरी, मनोज सिंह, बालेंदु तिवारी और राजेश त्रिपाठी आदि ने संबोधित किया।
•लखनऊ में धरना देने की चेतावनी
लखनऊ (ब्यूरो)। राज्य सरकार शिक्षक भर्ती प्रक्रिया पर से रोक हटवाने के लिए हाईकोर्ट की वृहद पीठ में संशोधित अध्यापक भर्ती नियमावली पेश करेगी। साथ ही अदालत को यह भी बताएगी कि टीईटी मेरिट के स्थान पर शैक्षिक मेरिट क्यों किया गया। यही नहीं राज्य सरकार का इरादा टीईटी की जांच रिपोर्ट पेश करने का भी है। बेसिक शिक्षा विभाग का मानना है कि उसके तर्कों से हाईकोर्ट संतुष्ट होकर भर्ती प्रक्रिया शुरू करने की अनुमति दे सकता है। शिक्षक भर्ती मामले में 3 अप्रैल को सुनवाई होने की उम्मीद है। कोर्ट यह तय करेगा कि शिक्षक भर्ती के लिए अपनाई गई प्रक्रिया ठीक है या नहीं।
प्रदेश के प्राइमरी स्कूलों में शिक्षकों की भारी कमी है। राज्य सरकार इसे देखते हुए टीईटी पास बीएड डिग्रीधारकों को सीधे सहायक अध्यापक रखना चाहती है। इसके लिए 72,825 पदों के लिए विज्ञापन निकाल कर आवेदन मांगे गए। इन पदों के लिए 69 लाख आवेदन आए। बेसिक शिक्षा विभाग ने मेरिट सूची में आए अभ्यर्थियों की 4 फरवरी से काउंसलिंग भी शुरू करा दी थी, लेकिन हाईकोर्ट ने इस पर रोक लगा दी। हाईकोर्ट में पहले डबल बेंच में शिक्षक भर्ती संबंधी मामले की सुनवाई हो रही थी। शिक्षक भर्ती में टीईटी को लेकर उठे सवालों को लेकर पूरा ब्यौरा हाईकोर्ट ने मांगा था। विभाग ने डबल बेंच को पूरी जानकारी दी थी, लेकिन अब यह मामला वृहद पीठ के हवाले कर दिया गया है।
बेसिक शिक्षा विभाग अब इसके आधार पर वृहद पीठ के समक्ष पूरा मामला रखेगा। इसमें बताया जाएगा कि शिक्षक भर्ती के लिए बेसिक शिक्षा अध्यापक नियमावली बदली गई है। नियमावली में शैक्षिक मेरिट को आधार बनाया गया है। टीईटी को केवल पात्रता परीक्षा माना गया है। यह भी बताया जाएगा कि टीईटी में गड़बड़ी की जांच रमाबाई नगर की पुलिस ने की थी। इस जांच के आधार पर मुख्य सचिव जावेद उस्मानी की अध्यक्षता में गठित कमेटी भी जांच कर चुकी है। जांच रिपोर्ट के आधार पर ही शिक्षकों की भर्ती प्रक्रिया शुरू की गई है
आज 1 अप्रैल 2013 से बच्चों को होगा शिक्षा का पूरा अधिकार
•अमर उजाला ब्यूरो
नई दिल्ली। आज से देश के हर बच्चे को अपने घर पड़ोस में निशुल्क प्राथमिक शिक्षा पाने का अधिकार होगा। केंद्र व राज्य सरकारों का यह दायित्व होगा कि वे 6 से 14 साल की उम्र के हर बच्चे को प्रवेश के लिए पर्याप्त स्कूल, शिक्षक तथा अन्य जरूरी संसाधन उपलब्ध कराए।
देश में शिक्षा के अधिकार कानून (आरटीई) को लागू करने के बाद सरकारों की जरूरी संसाधन जुटाने के लिए तीन साल की मोहलत दी गई थी, जो पूरी हो गई है, लेकिन तमाम उपाय अब भी अधूरे हैं। स्कूलों में 11 लाख से ज्यादा शिक्षकों के पद खाली हैं तो आठ लाख से ज्यादा शिक्षक अप्रशिक्षित हैं। हजारों निजी स्कूलों को अभी तक मान्यता नहीं मिली है, जिन्हें नए कानून के अनुसार अब बंद करना होगा। ऐसे में सवाल उठता है कि सरकारें बच्चों को संविधान व कानून के हिसाब से उनका अधिकार कैसे दिला पाएंगी।
स्कूली शिक्षा को संवैधानिक अधिकार के लिए वर्ष 2002 में 86वें संविधान में अनुच्छेद 21-ए जोड़ा गया था। तब से दस साल गुजर गए। पहले सर्वशिक्षा अभियान चलाया गया। फिर राइट टू एजूकेशन बिल के माध्यम से इस अधिकार को अप्रैल 2010 में लागू किया गया। बच्चों को शिक्षा के अधिकार का प्रस्ताव तीन साल के लिए स्थगित रखा गया था ताकि सभी सरकारें जरूरत के मुताबिक स्कूल, शिक्षा व अन्य तैयारियां पूरी कर सकें।
आरटीई कानून में किए गये कई महत्वपूर्ण फैसलों पर अभी तक अमल नहीं हो पाया है। सबसे बड़ा संकट देश के उन बड़े राज्यों के सामने है जो पहले से शिक्षा के क्षेत्र में पिछड़े हुए थे। इनमें उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, छत्तीसगढ़ जैसे राज्य शामिल हैं।
पूरे देश में सरकारी तथा सहायता प्राप्त स्कूलों में 11.87 लाख शिक्षकों के पद खाली हैं। इनमें से तीन लाख से ज्यादा सीटें अकेले यूपी में खाली हैं।
आरटीई में सभी शिक्षकों का प्रशिक्षित होना जरूरी है। देश में 8.6 लाख शिक्षक अप्रशिक्षित हैं। इनके प्रशिक्षण के लिए तीन साल में अभी तक नीतियां भी नई तय हो पाई हैं। इस बीच, केंद्र सरकार ने फिर से 13 राज्यों को अप्रशिक्षित शिक्षकों की भर्ती करने की छूट दे दी है। हर स्कूल में मैनेजमेंट कमेटी बनाने का प्रस्ताव है। आठवीं तक बच्चों को फेल न करने का फैसला तो लागू हो गया है, लेकिन बृहत्तर एवं सतत मूल्यांकन प्रणाली (सीसीई) कहीं शुरू नहीं हो सकी है। अलबत्ता कई राज्यों में शिक्षकों को अभी तक इस प्रणाली की जानकारी तक नहीं है।
आरटीई के तहत इसी तरह के एक दर्जन अन्य फैसलों पर भी तमाम राज्यों में कोई काम नहीं हुआ है। कुछ राज्यों ने आरटीई को प्रभावी करने के लिए एक साल की मोहलत मांगी थी, किंतु मानव संसाधन मंत्रालय ने इसे टाल दिया। अब दो अप्रैल को केंद्रीय सलाहकार बोर्ड की बैठक में इस पर चर्चा होगी। बैठक के बाद ही केंद्र सरकार अधूरी तैयारियों के लिए आगे और मोहलत पर कोई फैसला लेगी।
11
लाख से ज्यादा शिक्षकों के पद पड़े हैं खाली देशभर में
क्या है प्रावधान
छह से 14 साल के बच्चों को मुफ्त एवं अनिवार्य शिक्षा का प्रावधान
बच्चों को फीस नहीं देनी होगी, न ही यूनिफॉर्म, किताबें या ट्रांसपोर्टेशन पर खर्च करना होगा
हर 60 बच्चों को पढ़ाने के लिए कम से कम दो ट्रेंड शिक्षक रखना होगा
निजी शैक्षणिक संस्थानों में गरीब परिवारों के बच्चों के लिए 25 फीसदी सीटें आरक्षित
टीईटी अभ्यर्थियों को किया जा रहा है परेशान
अमर उजाला
देवरिया। टीईटी संघर्ष मोर्चा की साप्ताहिक बैठक रविवार को टाउनहाल परिसर में हुई। बैठक में न्यायालय को गुमराह करने और संघर्ष मोर्चा की मांगों को यूपी सरकार के दरकिनार किए जाने पर नाराजगी जताई गई। इसके लिए मोर्चा को संगठितहोकर संघर्ष करने पर बल दिया गया। बैठक को संबोधित करते हुए अध्यक्ष अनुराग मल्ल ने कहा कि राज्य सरकार बार-बार कोर्ट को गुमराह कर रही है और भर्ती प्रक्रिया को लंबित रखना चाहती है।राज्य सरकार के इस रवैये के खिलाफ प्रदेश के सारे टीईटी अभ्यर्थी पुन: सड़क पर उग्र आंदोलन करेंगे और विधानसभा के सामने धरना देंगे। बैठक में विकास पांडेय, शैलेष मणि, रघुबंश शुक्ला, शमशेर अहमद, हरेंद्रपुरी, मनोज सिंह, बालेंदु तिवारी और राजेश त्रिपाठी आदि ने संबोधित किया।
•लखनऊ में धरना देने की चेतावनी