लिपिक की नियुक्ति को कंप्यूटर प्रशिक्षण अनिवार्य Updated on: Wed, 06 Mar 2013 11:11 PM (IST)
जागरण संवाददाता, आगरा: शिक्षकों की भर्ती में शिक्षक पात्रता परीक्षा के
समान लिपिकों की भर्ती में भी अब कंप्यूटर प्रशिक्षण अनिवार्य हो गया है।
बिना कंप्यूटर कोर्स के प्रमाण पत्रके आवेदकों को लिपिक के पद पर नियुक्ति
नहीं मिलेगी। उन्हें सीसीसी (कोर्स ऑन कंप्यूटर कांसेप्ट) करना होगा।
आइसीईटी (इंस्टीट्यूट ऑफ कंप्यूटिंग विद इनहैंस टेक्नोलॉजी) के निदेशक
अरविंद सुतैल ने यह जानकारी दी। उन्होंने बताया कि सीसीसी कोर्स का कोर्स
नालंबद स्थित आईसीईटी कंप्यूटर एजूकेशन पर किया जा सकता है। 80 घंटे के
कोर्स में हाईस्कूल उत्तीर्ण 18 से 35 वर्ष के सभी अभ्यर्थी प्रशिक्षण
प्राप्त कर सकते हैं। इसके लिए 26 अप्रैल तक अभ्यर्थी आवेदन पत्र जमा कर
सकते हैं। 20-20 के बैच में प्रशिक्षण दिया जाएगा, जो दो से ढाई माह तक
चलेगा।
शिक्षा मित्रों की परीक्षा में जमकर नकल Updated on: Wed, 06 Mar 2013 10:05 PM (IST) शिक्षा मित्रों की परीक्षा में जमकर नकल
अछनेरा: द्वितीय बैच में बीटीसी प्रशिक्षण प्राप्त कर रहे शिक्षा मित्रों
के प्रथम सेमेस्टर की परीक्षा के दौरान जमकर नकल का खेल चला। हालात ये थे
कि शिक्षा मित्र खुले में किताब रखकर न सिर्फ नकल कर रहे थे, बल्कि एक
दूसरे की मदद भी ले रहे थे। अछनेरा स्थित पूर्व माध्यमिक विद्यालय में
बुधवार को हुई परीक्षा के दौरान जमकर नकल की गई। परीक्षा देने आए 128
शिक्षा मित्रों में से अधिकांश के पास परीक्षा से संबंधित किताबें थीं। वे
खुले में नकल कर प्रश्न पत्र हल कर रहे थे। बताया जाता है कि ड्यूटी पर
तैनात पांच शिक्षा कर्मियों में से सिर्फ एक ही तैनात था। पता करने पर
बताया गया कि परीक्षा के बारे में किसी को पता ही नहीं है। शासन द्वारा
शिक्षामित्रों को शिक्षक का दर्जा दिए जाने की मंशा के तहत गुरुजनों द्वारा
इस तरह नकल करके पास होने के तरीके से सब हैरान हैं। लोगों में चर्चा है
कि वे आगे चलकर बच्चों को क्या पढ़ा पाएंगे।
लखनऊ (ब्यूरो)। टीईटी के फार्मों की बिक्री से आए पैसों का हिसाब नहीं मिल
पा रहा है। बेसिक शिक्षा विभाग अब वित्त विभाग से इसकी विशेष ऑडिट कराने
की तैयारी कर रहा है, ताकि पैसे कहां गए इसका पता लगा दोषियों के खिलाफ
कार्रवाई की जा सके। नवंबर 2011 में टीईटी आयोजित कराई गई थी।
11,53,155अभ्यर्थियों ने फार्म भरे। जानकारों की मानें तो टीईटी फार्म भरने
से माध्यमिक शिक्षा विभाग को 64 करोड़ रुपये मिले। परीक्षा कराने के लिए
प्रत्येक मंडलों को 30 से 32 लाख रुपये दिए गए। रिजल्ट तैयार करने वाली
कंप्यूटर कंपनी को 5 करोड़ रुपये के आसपास दिए गए। बाकी पैसे कहां खर्च किए
गए पता नहीं चल पा रहा है और न ही माध्यमिक शिक्षा परिषद इसका हिसाब बेसिक
शिक्षा विभाग को दे पा रहा है। प्रमुख सचिव बेसिक शिक्षा सुनील कुमार इस
संबंध में बेसिक शिक्षा परिषद के निदेशक को कई बार पत्र लिख चुके हैं।
सूत्रों के अनुसार बेसिक शिक्षा विभाग ने तय किया है कि टीईटी के पैसों की
विशेष ऑडिट करा ली जाए, ताकि पैसे के बारे में जानकारी मिल सके। यह भी
बताया जा रहा है कि हिसाब न मिलनेपर तत्कालीन माध्यमिक शिक्षा परिषद की
सचिव प्रभा त्रिपाठी के खिलाफ कार्रवाई भी की जा सकती है
पदोन्नति पर रोक से शिक्षकों को झटका • अमर उजाला ब्यूरो
चंदौसी। जिले के 1900 से अधिक शिक्षकों की उम्मीदों को झटका लगा है
क्योंकि शासन ने बेसिकशिक्षा विभाग के शिक्षकों की पदोन्नति पर दोबारा रोक
लगा दी है। सचिव बेसिक शिक्षा ने गुरुवार की सुबह ही आदेश जारी किए हैं।
इसके बाद बेसिक शिक्षा विभाग में चल रहे पदोन्नति प्रक्रिया पर फिलहाल
विराम लग गया है। अग्रिम आदेशों तक अब शिक्षकों को इंतजार करना पड़ेगा।
बेसिक शिक्षकों की पदोन्नति एक साल से फंसी हुईहै। हाल ही में चार फरवरी
को रोक हटाई गई थी। बेसिक शिक्षा अधिकारी ने रोक हटते ही शिक्षकों की
वरिष्ठता सूची तैयार कराई और 20 मई तक शिक्षकों की प्रोन्नति करने का
निर्णय लिया था। प्रोन्नति की उम्मीदों को लेकर शिक्षक खुश थे लेकिन अचानक
सचिव बेसिक शिक्षा परिषद ने अपने आदेश में पदोन्नति पर रोक लगा दी है।
शिक्षकों को अब अगले आदेशों तक इंतजार करना होगा। बैठक कर जताया रोष
चंदौसी। उत्तर प्रदेशीय जूनियर हाईस्कूल पूर्व माध्यमिक शिक्षक संघ ने
बैठक कर पदोन्नति पर रोक लगाए जाने का विरोध किया। बैठकमें ब्लाक अध्यक्ष
गौरव मिश्रा ने कहा कि, शासन के आदेश पूर्णतया अनुचित हैं। शिक्षक संघों के
दबाव के बाद यह रोक हटाई गई थी। दोबारा पदोन्नति पर रोक लगाकर शिक्षकों के
विकास को राका जा रहा है। शिक्षक इसका विरोध करेंगे। संगठन की जिलाध्यक्ष
संतोष यादव ने कहा कि, यदि शासन ने जल्द ही रोक नहीं हटाई तो शिक्षक आंदोलन
करेंगे। इस मौके पर अनिल कपूर, विमलेश यादव, पारुल अग्रवाल, देवेंद्र सिंह
मलिक, दिनेश चंद्र शर्मा, दिव्या पाठक, नत्थूलाल शर्मा, अनुज कुमार
उपस्थित रहे। सचिव बेसिक शिक्षा का आदेश गुरुवार की सुबह को ही प्राप्त
हुआ है। हालांकि हमारी ओर से पदोन्नति से संबंधित सभी तैयारियां की जा
रहीं थीं लेकिन आदेश के बाद प्रक्रिया थम गई है। 8 प्रदीप कुमार द्विवेदी, बेसिक शिक्षा अधिकारी, संभल। •दोबारा लगी है रोक, जिले में बेसिक शिक्षा विभाग के 1900 शिक्षक प्रभावित
UPSC के नए परीक्षा फॉर्मेट में 'नैतिकता और ईमानदारी' का भी टेस्ट........ आज तक वेब ब्यूरो/भाषा | नई दिल्ली, 6 मार्च 2013 | अपडेटेड: 18:56
संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) ने अपना परीक्षा मॉडल बदल दिया है, अब आईएएस
बनने के लिए ईमानदारी और नैतिकता का भी टेस्ट देना होगा. इसके अलावा नए
फॉर्मेट में सामान्य अध्ययन पर भी अधिक जोर दिया जाएगा. कार्मिक एवं
प्रशिक्षण विभाग (डीओपीटी) की ओर से यूपीएससी द्वारा आयोजित परीक्षाओं में
बदलाव पर जारी अधिसूचना के अनुसार सिविल सेवा (मुख्य) परीक्षाओं में पहली
बार ‘नीतिशास्त्र, सत्यनिष्ठा और एप्टीट्यूड’ का अलग से प्रश्नपत्र होगा.
डीओपीटी ने प्रश्नपत्रों की अंक विभाजन प्रणाली में भी बदलाव किया है.
मुख्य परीक्षा में सामान्य अध्ययन विषय के अनिवार्य प्रश्नपत्र के अंक बढा
दिए गए हैं. सिविल सेवा (मुख्य) परीक्षा 2013 से सामान्य अध्ययन के 250-250
अंकों के चार अनिवार्य प्रश्नपत्र होंगे. इसके अलावा इतने ही अंकों केदो वैकल्पिक प्रश्नपत्र भी होंगे.
पहले सामान्य अध्ययन के दो अनिवार्य प्रश्नपत्र होते थे और दो वैकल्पिक
विषयों का. प्रत्येक प्रश्नपत्र 300 अंकों का होता था. मुख्य परीक्षा के
लिए कुल अंक 1800 होंगे. निबंध और अंग्रेज़ी ज्ञान का प्रश्नपत्र पहले की
ही तरह 300 अंकों का होगा. सिविल सेवाओं के लिए प्राथमिक परीक्षा इस
वर्ष 26 मई को होगी. इसके लिए ऑनलाइन आवेदन देने की अंतिम तिथि चार अप्रैल
है. सामान्य अध्ययन के प्रश्नपत्रों को इस प्रकार तैयार किया जाएगा जिससे
किसी विषय में विशेषज्ञता हासिल किए बिना भी कोई अच्छा जानकार प्रश्नों के
उत्तर देसके. अधिसूचना में कहा गया है, ‘प्रश्नपत्र इस प्रकार तैयार
किए जाएंगे जिनसे प्रत्याशी की विभिन्न विषयों की सामान्य जानकारी का आकलन
किया जा सके.’ प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने हाल में सिविल सेवा परीक्षाओं
में बदलाव को मंजूरी दी थी. परीक्षा प्रणाली में बदलाव का फैसला
यूपीएससी द्वारा गठित विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के पूर्व अध्यक्ष प्रोफेसर
अरुण एस. निगवेकर के नेतृत्व में गठित समिति की सिफारिशों के आधार पर किया
गया है.
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